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ओशो की मौत के 23 साल बाद सामने आई यह ‘वसीयत’ मचा सकती है हंगामा! भास्कर.कॉम

ओशो की मौत के 23 साल बाद सामने आई यह ‘वसीयत’ मचा सकती है हंगामा!  भास्कर.कॉम

 

 

 

 

 

 

 
भास्कर.कॉम

Dec 17, 2013, 14:07PM IST

पुणे। कुछ दिन पहले धर्मगुरु ओशो की मृत्‍यु के 23 साल बाद उनकी वसीयत सामने आई थी। ओशो की 1000 करोड़ से भी ज्‍यादा की संपत्ति पर हक जताने वाले लोग कोई और नहीं बल्कि उनके भक्‍त ही हैं। अब ट्रस्‍ट के ही दो गुट आमने-सामने आ गये हैं और मामला पुणे कोर्ट तक पहुंच गया था। भगवान रजनीश की 19 जनवरी 1990 को मृत्‍यु हो गई थी और उस वक्‍त किसी भी ट्रस्‍टी ने वसीयत के बारे में जिक्र नहीं किया था, लेकिन 23 साल बाद अचानक से यूरोपियन यूनियन कोर्ट के सामने ओशो की वसीयत रखी गई थी।

इस वसीहत ने ओशो की संपत्ति के मालिकाना हक की लड़ाई को नया मोड़ दे दिया था। ओशो के इस संपत्ति में उनका पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में बना 10 एकड़ में फैला विशाल आश्रम और उनके प्रवचनों के प्रकाशन से हो रही करोड़ों की आय शामिल है। ओशो की इस वसीयत के सामने आने के बाद उनके समर्थकों ने इसे एक फर्जी वसीयत बताते हुए इसके खिलाफ पुणे के कोरेगांव पार्क पुलिस थाने में मामला दर्ज करवाया है।

पुणे पुलिस ने इसी मामले में एक्शन लेते हुए ओशो आश्रम के प्रशासकों को नोटिस जारी करके उनसे ओशो की मूल वसीयत पेश करने के लिए कहा है। शहर के कोरेगांव पार्क स्थित ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजोर्ट को यह नोटिस 8 दिसंबर को दर्ज करवाई गई एक प्राथमिकी के आधार पर जारी किया गया है। यह प्राथमिकी योगेश ठक्कर उर्फ स्वामी प्रेमगीत ने ओशो शिष्यों के प्रतिद्वंद्वी समूह ओशो फ्रेंड्‍स फाउंडेशन की ओर से दर्ज करवाई गई थी।

शिकायत के मुताबिक, ओशो की हाल के दिनों में सामने आई वसीयत को 3 सिग्नेचर एक्सपर्ट को दिखाया गया और तीनों ने इस वसीयत में ओशो के सिग्नेचर को सही नहीं पाया था। उसी रिपोर्ट को आधार बनाते हुए वसीहत के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया था। शिकायत में यह भी लिखा गया कि ओशो आश्रम की संपत्ति को कुछ असामाजिक तत्व हड़प लेना चाहते हैं।

प्राथमिकी में आश्रम के मौजूदा 6 प्रशासकों पर फर्जी वसीयत तैयार करने का आरोप लगाया गया है। शिकायत के अनुसार 15 अक्टूबर 1989 की इस वसीयत में ओशो के जाली हस्ताक्षर हैं ताकि इस रहस्यमय आध्यात्मिक नेता की बौद्धिक संपदा के अधिकार पर दावा किया जा सके। ओशो का साहित्य दुनियाभर में वितरित होता है।

ओशो की संपत्तियों का विवाद मुंबई हाईकोर्ट में पहले से लंबित है। साल 2012 में ओशो आश्रम जमीन के एक घोटाले को लेकर विवादों में रहा है। 23 साल बाद सामने आई यह वसीयत ओशो की संपत्ति और प्रकाशन के सारे अधिकार नियो संन्यास इंटरनेशनल को ट्रांसफर करती है। ये संस्था वर्तमान में ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के नाम से जानी जाती है जो कि स्विस बेस्ड ट्रस्ट है। इसे ओशो के पुराने समर्थक माइकल ओ ब्रायन संचालित करते हैं। ओशो की मृत्यु के बाद ओशो आश्रम को यही ट्रस्ट चलाता है।चार दिन पहले जारी किए गए नोटिस में न्यासियों से संबद्ध मूल दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा गया था। बहरहाल, पुलिस को आश्रम के अधिकारियों की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। कोरेगांव पुलिस ने आज बताया, ‘हमारे नोटिस पर आश्रम के अधिकारियों से हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

http://www.bhaskar.com/article-hf/MH-PUN-police-asked-for-osho-original-will-4466342-PHO.html

 

 

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